इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य है। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस के इस कांव्याँश में तुलसीदास जी ने लक्ष्मण जी के माध्यम से स्थान-स्थान पर व्यंग्य का अनूठा प्रयोग किया है। उदाहरण के लिए –
(1) बहु धनुही तोरी लरिकाईं। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं||
लक्ष्मण जी परशुराम जी से धनुष को तोड़ने का व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि हमने अपने बालपन में ऐसे अनेकों धनुष तोड़े हैं तब हम पर कभी क्रोध नहीं किया।
(2) गाधिसू नु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।